बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति: धार्मिक कट्टरता या इंसानियत की हार?*
बांग्लादेश के हालात पर प्रासंगिक लेख: मुल्ला तफज्जुल हुसैन मुलायम वाला बुरहानपुर एमपी

बांग्लादेश में हालिया घटनाओं ने एक बार फिर इस बात को उजागर किया है कि धार्मिक कट्टरता कैसे समाज को बर्बाद कर सकती है। हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार, उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों और घरों को जलाने की खबरें, और महिलाओं का सरेआम अपमान एक सभ्य समाज के लिए शर्मनाक हैं। यह सब उस देश में हो रहा है जो अपनी आजादी के समय एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में उभरा था। 

इन घटनाओं को देखकर सवाल उठता है: क्या यह वही बांग्लादेश है, जिसने एकता और भाईचारे के सिद्धांत पर जन्म लिया था? क्या ये घटनाएं इस्लाम की शिक्षाओं का अनुसरण करती हैं, जो शांति और सहिष्णुता की बात करता है? कुरान में साफ तौर पर कहा गया है, "वला ताअसु फिल अरदे मुफसदीन" (अपनी नापाक हरकतों से ज़मीन को नापाक मत करो)। फिर भी, जो लोग खुद को इस्लाम के अनुयायी मानते हैं, वे कुरान की इन शिक्षाओं को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं?

सच्चाई यह है कि बांग्लादेश में हो रही यह हिंसा इस्लाम का नहीं, बल्कि उन लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, जिन्होंने धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थी और क्रूर मानसिकता को छिपा रखा है। ये लोग असल में वही हैं, जिन्हें कुरान में 'इबलीस की संतान' कहा गया है। वे इस्लाम की छवि को धूमिल कर रहे हैं और असल में वे अल्लाह की शिक्षाओं का उल्लंघन कर रहे हैं।

हमें यह समझना चाहिए कि धार्मिक आस्था का मतलब दूसरों के अधिकारों का हनन नहीं है। किसी भी धर्म का सच्चा पालन वही कर सकता है, जो इंसानियत को प्राथमिकता देता है। आज बांग्लादेश के मुसलमानों को यह सोचना होगा कि क्या वे अपने धर्म के सही अनुयायी हैं, या फिर उन्होंने शैतानियत के रास्ते को चुन लिया है। 

भारत और दुनिया भर के मुसलमानों को इन घटनाओं की निंदा करनी चाहिए और सच्चे इस्लामी मूल्यों का समर्थन करना चाहिए। भारत सरकार को भी इस स्थिति पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। यह समय है कि हम सभी मिलकर एकजुट हों और उस विचारधारा का विरोध करें, जो धर्म के नाम पर इंसानियत को कुचलने का प्रयास कर रही है। 

इस लेख का उद्देश्य न केवल बांग्लादेश में हो रही घटनाओं की निंदा करना है, बल्कि एक व्यापक सवाल उठाना है: क्या हम धर्म को इंसानियत से ऊपर रख सकते हैं? यदि नहीं, तो हमें उन सभी कार्यों की आलोचना करनी चाहिए जो किसी भी धर्म के नाम पर इंसानियत के खिलाफ किए जा रहे हैं।